"एक दूजे के वास्ते" | ek duje ke vaaste |

“एक दूजे के वास्ते” | ek duje ke vaaste |

“एक दूजे के वास्ते” | ek duje ke vaaste | प्रेम कहानी |

एक छोटे से गांव में रामनारायण और उसकी पत्नी सवित्री रहते थे। जवानी में उनका प्रेम पूरे गांव में मिसाल हुआ करता था। उन्होंने मिलकर जीवन की हर कठिनाई का सामना किया था और हर खुशी को एक साथ मनाया था। सवित्री की हंसी रामनारायण के लिए संगीत जैसी थी, और रामनारायण का ध्यान सवित्री के लिए सबसे बड़ा सहारा था।

वक्त के साथ, उनके जीवन में अनजानी खटास आ गई। रामनारायण और सवित्री अब अक्सर झगड़ने लगे थे। रामनारायण के मन में सवित्री के प्रति नफरत सी पैदा हो गई थी, जिसे वह खुद भी समझ नहीं पाता था। उसे लगता था कि सवित्री ने उसके साथ बुरा किया है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था।

सवित्री रामनारायण के इस बदलते व्यवहार से दुखी रहती थी, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। उसने रामनारायण को समझाने की बहुत कोशिश की, पर उसकी कोई भी बात रामनारायण के दिल तक नहीं पहुंचती थी। गांववाले भी उनकी इस हालत से चिंतित रहते थे, क्योंकि वे जानते थे कि ये दोनों एक-दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह पाते थे। “एक दूजे के वास्ते” | Ek duje ke vaaste |

"एक दूजे के वास्ते" | ek duje ke vaaste |

एक दिन, गांव में एक साधु का आगमन हुआ। वह साधु अपने ज्ञान और विद्वत्ता के लिए प्रसिद्ध था। गांववालों ने रामनारायण और सवित्री की समस्या के बारे में साधु को बताया और उनसे मदद की गुहार लगाई। साधु ने रामनारायण और सवित्री से मिलने की इच्छा जताई और उनके घर पहुंचे।

साधु ने रामनारायण से पूछा, “बेटा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी नफरत की वजह क्या है?”

रामनारायण ने उदास मन से जवाब दिया, “नहीं महाराज, मुझे खुद भी नहीं पता कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं। मुझे बस ऐसा लगता है कि सवित्री ने मेरे साथ कुछ बहुत बुरा किया है, पर मैं जानता हूं कि उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया।”

साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह तुम्हारे मन का भ्रम है, बेटा। तुम्हारे मन में नफरत की जो गांठें बंध गई हैं, उन्हें खोलने की जरूरत है।”

साधु ने रामनारायण को एक खास तरीका सुझाया। उन्होंने कहा, “तुम्हें हर दिन एक बात के लिए सवित्री का धन्यवाद करना होगा। छोटी से छोटी बात भी चलेगी, पर हर दिन उसे धन्यवाद कहना होगा।”

रामनारायण को यह सुझाव अजीब लगा, पर उसने साधु की बात मान ली। अगले दिन से, उसने सवित्री को छोटी-छोटी बातों के लिए धन्यवाद कहना शुरू किया। “एक दूजे के वास्ते” | Ek duje ke vaaste |

"एक दूजे के वास्ते" | ek duje ke vaaste |

पहले दिन उसने कहा, “धन्यवाद सवित्री, तुमने मेरे लिए चाय बनाई।”

दूसरे दिन उसने कहा, “धन्यवाद सवित्री, तुमने मेरा ख्याल रखा।”

धीरे-धीरे, रामनारायण को एहसास होने लगा कि सवित्री के बिना उसका जीवन कितना अधूरा है। उसकी नफरत की जगह फिर से प्रेम ने ले ली। उसे याद आने लगा कि कैसे सवित्री ने हर मुश्किल वक्त में उसका साथ दिया था, कैसे वह उसके बिना अधूरा था।

सवित्री भी रामनारायण के इस बदलाव से खुश थी। उसने फिर से अपने पुराने रामनारायण को वापस पा लिया था। दोनों ने मिलकर अपने झगड़ों को भुला दिया और फिर से अपने जीवन को खुशहाल बना लिया। “एक दूजे के वास्ते” | Ek duje ke vaaste |

गांववालों को भी इस बात की खुशी थी कि रामनारायण और सवित्री का प्यार फिर से पहले जैसा हो गया था। साधु ने गांव को छोड़ते वक्त कहा, “प्यार और समझदारी से हर समस्या का समाधान हो सकता है। बस हमें अपने मन की गांठों को खोलना आना चाहिए।”

रामनारायण और सवित्री ने मिलकर अपने बचे हुए जीवन को खुशी-खुशी जीने का संकल्प लिया। उन्होंने समझ लिया था कि प्यार और विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। उनके जीवन में फिर से प्यार की बहार आ गई और उन्होंने अपनी बाकी की जिंदगी को एक-दूसरे के साथ हंसी-खुशी बिताया।

इस तरह, रामनारायण और सवित्री की कहानी का अंत भी एक नई शुरुआत के साथ हुआ। “एक दूजे के वास्ते” | ek duje ke vaaste | प्रेम कहानी |

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