“मिट्टी से जुड़ी डोर” | Maati Se Bandhi Dor | [ कहानी ]
गाँव की पगडंडियों में दौड़ती मिट्टी, खेतों की हरियाली, और ठंडी हवा में घुली मिट्टी की सुगंध मिलकर एक अलग ही दुनिया रचती हैं। इस दुनिया में, एक छोटे से घर में, राधा अपने पति मोहन और बेटे छोटू के साथ रहती थी। राधा की दुनिया में उसका परिवार और उसका गाँव ही सब कुछ था।
राधा और मोहन के पास बहुत संपत्ति नहीं थी, लेकिन उनके बीच दिल से जुड़ी एक मजबूत डोर थी। मोहन खेतों में मेहनत करता और राधा घर की देखभाल करती। दोनों ही बहुत खुश रहते थे। छोटू की हँसी और खेल-खेल में राधा और मोहन की सारी थकान मिट जाती थी।
एक दिन गाँव में एक नया स्कूल खुला। गाँव वालों ने तय किया कि अब उनके बच्चों को पढ़ाई के लिए शहर नहीं जाना पड़ेगा। राधा और मोहन ने भी छोटू को स्कूल भेजने का निर्णय लिया ताकि वह पढ़-लिखकर एक अच्छा इंसान बन सके। छोटू को स्कूल भेजने का मतलब था कि उन्हें अब और मेहनत करनी पड़ेगी ताकि स्कूल की फीस और किताबों का खर्च उठा सकें। लेकिन वे दोनों इसके लिए तैयार थे।
गाँव का जीवन धीरे-धीरे बदल रहा था। खेतों में नई-नई फसलें उगाई जा रही थीं और गाँव में नई तकनीकें आ रही थीं। लेकिन राधा और मोहन के लिए सबसे बड़ी खुशी तब होती जब वे छोटू को स्कूल से लौटते हुए देखते। छोटू भी पढ़ाई में बहुत अच्छा था और स्कूल में सबका प्रिय बन गया था। “मिट्टी से जुड़ी डोर” | Maati Se Bandhi Dor |
फिर अचानक समय ने करवट ली। एक दिन मोहन खेतों में काम करते हुए गिर गया। डॉक्टर ने बताया कि उसे दिल का दौरा पड़ा था। अब मोहन काम करने की स्थिति में नहीं था। यह राधा के लिए बहुत बड़ा झटका था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने छोटे-मोटे काम शुरू किए ताकि घर का खर्चा चल सके और छोटू की पढ़ाई में कोई बाधा न आए।
राधा की मेहनत और छोटे-मोटे कामों से थोड़ी बहुत राहत मिली, लेकिन पैसों की तंगी हमेशा बनी रहती थी। फिर भी राधा ने हार नहीं मानी। उसने सोचा कि अब समय आ गया है जब वह अपनी मिट्टी से कुछ खास करे। उसने अपने खेत में जैविक खेती की शुरुआत की। धीरे-धीरे उसके खेतों में उगाई गई सब्जियाँ और फल गाँव के बाजार में प्रसिद्ध हो गए।
छोटू भी बड़ा हो रहा था और उसने अपनी माँ की मेहनत को समझना शुरू कर दिया था। वह भी माँ की मदद करने लगा और साथ ही अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगा। राधा और छोटू की मेहनत रंग लाई। गाँव के लोग अब राधा को प्रेरणा मानने लगे थे। उन्होंने देखा कि कैसे एक महिला ने अपने पति की बीमारी के बावजूद अपने परिवार को संभाला और अपने खेतों में नई सोच और मेहनत से सफलता हासिल की।
एक दिन गाँव में एक बड़ा अधिकारी आया। उसने राधा के खेतों और उसकी मेहनत की कहानी सुनी और उसे सम्मानित करने का निर्णय लिया। गाँव के सभी लोग इकट्ठा हुए और राधा को सम्मानित किया गया। राधा की आँखों में आँसू थे, लेकिन वे आँसू खुशी के थे। उसे अपने ऊपर गर्व था कि उसने हार नहीं मानी और अपने परिवार को सँभाला। “मिट्टी से जुड़ी डोर” | Maati Se Bandhi Dor |
मोहन, जो अब काफी कमजोर हो चुका था, ने भी राधा के साहस और मेहनत की सराहना की। उसने महसूस किया कि उसकी पत्नी ने कितनी मेहनत से परिवार को संभाला है। उसने राधा को गले लगाया और कहा, “तुमने साबित कर दिया कि सच्ची मेहनत और ईमानदारी कभी व्यर्थ नहीं जाती।”
छोटू भी अब बड़ा हो चुका था और उसने अपनी माँ से सीखा कि मेहनत और लगन से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक अच्छी नौकरी पाई। उसने अपनी माँ का सपना पूरा किया और गाँव में एक बड़ा स्कूल खोलने का निर्णय लिया ताकि और भी बच्चों को शिक्षा मिल सके।
राधा की मिट्टी से जुड़ी डोर ने न केवल उसके परिवार को, बल्कि पूरे गाँव को एक नई दिशा दी। उसने साबित कर दिया कि सच्ची मेहनत और मिट्टी से जुड़ा रहना ही असली सफलता है। गाँव के लोग अब भी राधा की कहानी सुनते और अपने बच्चों को प्रेरित करते हैं।
इस तरह, मिट्टी से जुड़ी डोर ने राधा, मोहन और छोटू के जीवन में एक नई दिशा दी और एक मिसाल कायम की। मिट्टी की खुशबू और राधा की मेहनत ने साबित कर दिया कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, अगर हौसला और मेहनत हो तो सब कुछ संभव है। “मिट्टी से जुड़ी डोर” | Maati Se Bandhi Dor |
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ओंकार रॉय.
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