“मेरा यह भ्रम था ” | mera ye bharam tha |
यह एक रवि नाम के आदमी की कहानी है। रवि एक मेहनती और ईमानदार व्यक्ति था, जो शहर की एक प्रतिष्ठित कंपनी में काम करता था। उसकी सादगी और जिम्मेदारियों का एकमात्र लक्ष्य उसकी पत्नी, राधिका, और उसका बेटे की खुशी थी। राधिका उसकी दुनिया थी, और रवि उसके हर छोटे-बड़े शौक को पूरा करने के लिए सदैव तत्पर रहता था। उसकी तन्ख्वाह बहुत अधिक नहीं थी, लेकिन जो भी थी, वह सब राधिका और घर के खर्चों में लगा देता था। खुद के लिए वह कभी कुछ नहीं खरीदता था, क्योंकि उसकी प्राथमिकता राधिका की खुशियां थीं। “मेरा यह भ्रम था” | mera ye bharam tha |
राधिका को शॉपिंग और जेवर का बहुत शौक था। रवि अपनी छोटी-छोटी बचत से उसके लिए नए-नए कपड़े और गहने लाकर देता था। लेकिन राधिका को कभी संतुष्टि नहीं होती थी। वह हमेशा रवि को ताने मारती थी और उसकी तुलना अपने दोस्तों के पतियों से करती थी। “देखो, मेरी दोस्त के पति ने उसे नई गाड़ी दिलाई है,” या “मेरी सहेली के पास इतना बड़ा मकान है, और हम अभी भी इस छोटे से फ्लैट में रह रहे हैं।” रवि यह सब सुनकर भी अनसुना कर देता था और सिर्फ एक मुस्कान के साथ उसकी बातों को टाल देता था।
राधिका की शिकायतें बढ़ती गईं, लेकिन रवि की प्यार में कोई कमी नहीं आई। वह अपने काम में दिन-रात मेहनत करता और घर आकर राधिका की इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता। एक दिन, राधिका अपनी दोस्त की शादी में गई। वहां उसकी दोस्त का एक अमीर रिश्तेदार भी आया था। उसकी दोस्त ने उनका परिचय करवाया, और राधिका और वह आदमी, विनीत, जल्दी ही अच्छे दोस्त बन गए। दोनों ने एक दूसरे का नंबर लिया और रोज बातें करने लगे। विनीत का अमीर होना राधिका को बहुत आकर्षित करता था। उसे लगा कि विनीत उसकी उन सभी इच्छाओं को पूरा कर सकता है जो रवि कभी नहीं कर सका। | “मेरा यह भ्रम था” | mera ye bharam tha |
कुछ दिनों बाद, राधिका ने रवि से तलाक की मांग की। रवि ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन राधिका के दिल में अब विनीत के लिए जगह बन चुकी थी। अंततः राधिका ने रवि को छोड़ दिया और विनीत के साथ नई जिंदगी शुरू कर दी। रवि टूट गया था। उसने कभी नहीं सोचा था कि राधिका उसे इस तरह छोड़ देगी।
तलाक के बाद, रवि अपने बेटे आर्यन के साथ रहने लगा। आर्यन ही अब उसकी दुनिया था। वह अपनी पुरानी यादों में खोया रहता और अक्सर राधिका को याद कर रो पड़ता। लेकिन उसने कभी अपने बेटे के सामने अपनी कमजोरियां जाहिर नहीं होने दी। वह अपने बेटे को एक अच्छा जीवन देने की पूरी कोशिश करता। रवि ने आर्यन की हर जरूरत को पूरा करने की ठानी और उसे हर संभव खुशी देने की कोशिश की। “मेरा यह भ्रम था” | mera ye bharam tha | love story |
समय के साथ रवि ने समझ लिया कि सच्ची खुशी बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि प्यार और सम्मान में होती है। उसने अपने बेटे को यही सिखाया कि जीवन में सच्चा सुख किसमें है। राधिका के जाने के बाद भी रवि ने अपने प्यार को कम नहीं होने दिया, बल्कि उसने अपने बेटे के रूप में अपने प्यार को नया रूप दिया। “मेरा यह भ्रम था मेरे पास तुम हो” | “मेरा यह भ्रम था”| mera ye bharam tha |
राधिका, जो अब विनीत के साथ रह रही थी, धीरे-धीरे समझने लगी कि पैसे और ऐशो-आराम में वह खुशी नहीं थी जो रवि के साथ थी। विनीत के साथ उसकी जिंदगी में वह गर्मजोशी और सच्चाई नहीं थी, जो रवि के साथ थी। उसे एहसास हुआ कि उसने एक सच्चे प्यार को खो दिया है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रवि ने अपने बेटे के साथ एक नई जिंदगी की शुरुआत कर दी थी।
रवि की यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में सच्ची खुशी और संतुष्टि बाहरी चमक-धमक में नहीं, बल्कि दिल से जुड़ी भावनाओं और रिश्तों में होती है। रवि ने अपने प्यार और समर्पण से यह साबित कर दिया कि सच्चा प्यार किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है और हमें हमेशा सही रास्ते पर ले जाता है।
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ओंकार रॉय.