“किस्मत की लकीरों से” | kismat ki lakiro se |
राधिका और आदित्य की ज़िंदगी अलग-अलग राहों पर चल रही थी। राधिका मुंबई की एक प्रतिष्ठित कंपनी में सीनियर मैनेजर थी, जबकि आदित्य दिल्ली में अपना स्टार्टअप चला रहा था। अपने करियर में दोनों ने अच्छे मुकाम हासिल किए थे, लेकिन दिल में एक खालीपन था।
एक दिन, कंपनी के काम से राधिका को दिल्ली जाना पड़ा। यह उसका पहला दौरा था और वह थोड़ी चिंतित थी। दिल्ली की ठंडी हवाओं में उसकी गाड़ी एयरपोर्ट से होटल की ओर बढ़ रही थी। उसी समय, आदित्य अपनी कंपनी के नए प्रोजेक्ट के लिए कुछ महत्वपूर्ण बैठकों की तैयारी कर रहा था। उसे भी उसी होटल में एक सेमिनार में भाग लेना था जहाँ राधिका ठहरी हुई थी।
रात के खाने के बाद राधिका होटल की लॉबी में बैठी किताब पढ़ रही थी। उसकी निगाहें किताब में थीं, लेकिन मन कहीं और था। आदित्य भी वहाँ आया, हाथ में कॉफी का कप लेकर। उसने सोचा कि इतनी भीड़ में एक शांत और सुंदर चेहरा देखना संयोग ही होगा।
आदित्य ने हिम्मत जुटाई और राधिका के पास जाकर कहा, “आप यहाँ अकेली बैठी हैं, क्या मैं आपके साथ बैठ सकता हूँ?”
राधिका ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, क्यों नहीं।” “किस्मत की लकीरों से” | kismat ki lakiro se |
धीरे-धीरे बातचीत शुरू हुई। आदित्य ने राधिका से पूछा, “आप दिल्ली में नई हैं, लग रहा है। क्या यहाँ कुछ खास काम से आई हैं?”
राधिका ने बताया कि वह काम के सिलसिले में आई है और कुछ दिनों के लिए यहाँ रुकी है। आदित्य ने उसे दिल्ली की कुछ खास जगहों के बारे में बताया और उसे वहाँ घुमाने की पेशकश की। राधिका ने सहमति में सिर हिलाया।
अगले दिन दोनों दिल्ली की गलियों में घूमते रहे। आदित्य ने उसे लाल किला, कुतुब मीनार, और इंडिया गेट दिखाया। राधिका ने भी अपनी जिंदगी की कुछ बातें साझा कीं। दोनों के बीच एक अजीब सा कनेक्शन बन रहा था। ऐसा लग रहा था कि दोनों की जिंदगी की लकीरें एक-दूसरे से जुड़ रही हैं।
कुछ दिनों बाद, राधिका को वापस मुंबई लौटना पड़ा। आदित्य उसे एयरपोर्ट छोड़ने आया। दोनों के बीच एक मौन था, जो बहुत कुछ कह रहा था। राधिका ने आदित्य से कहा, “दिल्ली में तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। उम्मीद है कि फिर कभी मिलेंगे।”
आदित्य ने जवाब दिया, “हां, किस्मत ने चाहा तो जरूर मिलेंगे।”
मुंबई लौटने के बाद राधिका ने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में खुद को व्यस्त कर लिया, लेकिन आदित्य के साथ बिताए वे कुछ दिन उसकी यादों में बसे हुए थे। वहीं, आदित्य भी अपने काम में व्यस्त था, लेकिन राधिका की मुस्कान और उसकी बातें उसे याद आती रहतीं। “किस्मत की लकीरों से” | kismat ki lakiro se |
कुछ महीनों बाद, आदित्य को मुंबई में एक बड़ी मीटिंग के लिए बुलाया गया। यह एक महत्वपूर्ण अवसर था, जिसे वह छोड़ नहीं सकता था। मीटिंग के बाद उसने सोचा कि क्यों न राधिका से मिल लिया जाए। उसने राधिका को कॉल किया और उससे मिलने का अनुरोध किया।
राधिका ने खुशी-खुशी उसकी बात मानी और दोनों ने एक कॉफी शॉप में मिलने का तय किया। जब दोनों मिले, तो ऐसा लगा जैसे वक्त वहीं रुक गया था जहाँ वे पिछली बार मिले थे। उनकी बातें, हंसी और मजाक फिर से शुरू हो गए। दोनों ने एक-दूसरे को अपने दिल की बातें बताईं और यह महसूस किया कि उनके बीच कुछ खास है।
आदित्य ने हिम्मत जुटाकर राधिका से कहा, “राधिका, शायद यह किस्मत ही है जो हमें बार-बार मिलाती है। क्या तुम सोचती हो कि हम एक साथ अपनी जिंदगी बिता सकते हैं?” “किस्मत की लकीरों से” | kismat ki lakiro se |
राधिका की आंखों में खुशी और आश्चर्य था। उसने कहा, “आदित्य, मैं भी यही सोचती हूँ। शायद हमारे दिल की लकीरें वाकई में एक-दूसरे से जुड़ी हैं।”
दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया और एक नई शुरुआत की। किस्मत की लकीरों ने दो अजनबियों को मिलाकर उन्हें एक खूबसूरत सफर पर भेज दिया था, जहाँ प्यार और समझ थी।
इस तरह राधिका और आदित्य की प्रेम कहानी ने एक नया मोड़ लिया, जिसमें किस्मत की लकीरों ने उनका साथ दिया। उनका मिलना और फिर बिछड़ना, और अंत में एक होना, सब कुछ किस्मत की लकीरों का खेल था। जीवन की इस यात्रा में उन्होंने एक-दूसरे का साथ पाया और हमेशा के लिए एक हो गए। “किस्मत की लकीरों से” | kismat ki lakiro se |
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ओंकार रॉय.