“तुम बहुत अच्छी हो” | tum bahut achi ho | यह कहानी सच्चे प्यार पर आधारित है |👩❤️👨💝❣️
यह एक रमेश नाम के लड़के की कहानी है। रमेश एक छोटे से गाँव में अपने माता-पिता और छोटी बहन प्रीति के साथ रहता था। गाँव का जीवन सरल और शांत था, लेकिन रमेश के जीवन में एक बड़ी समस्या थी। उसे एक बीमारी थी जिसके कारण वह जो भी बोलता, वह भूल जाता था। इस कारण से उसके कोई दोस्त नहीं थे। लोग उसके साथ समय बिताने से कतराते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि वह कुछ भी याद नहीं रख पाता।
रमेश के माता-पिता को उसकी बहुत चिंता रहती थी। वे हमेशा सोचते रहते थे कि जब तक वे जीवित हैं, तब तक वे उसका ख्याल रख सकते हैं, लेकिन उनके बाद रमेश का क्या होगा? रमेश की बहन प्रीति उसे बहुत प्यार करती थी। वह कॉलेज जाती थी और पढ़ाई में बहुत होशियार थी। उसका सपना था कि वह डॉक्टर बने और अपने परिवार का नाम रोशन करे।
एक दिन प्रीति की सहेलियां उनके घर आईं। रमेश भी वहीं था, लेकिन वह हमेशा की तरह एक कोने में बैठा था। प्रीति की एक सहेली, सुष्मिता, ने प्रीति से पूछा, “तुम्हारे भाई कहां हैं? हमने उसकी बहुत तारीफ सुनी है तुमसे। तुम दोनों भाई-बहन बहुत प्यार से रहते हो, कभी झगड़ा नहीं करते। उसे भी मिलवा दो हमसे।” “तुम बहुत अच्छी हो” | tum bahut achi ho |
प्रीति ने मुस्कुराते हुए रमेश की ओर इशारा किया और कहा, “वह वहां बैठा है। चलो, मैं तुम्हें उससे मिलवाती हूँ।” सुष्मिता और अन्य सहेलियां रमेश के पास गईं। सुष्मिता ने उसे हंसते हुए कहा, “हैलो रमेश, मैं सुष्मिता हूँ। प्रीति ने तुम्हारी बहुत तारीफ की है।”
रमेश ने मुस्कुराते हुए उनका अभिवादन किया, लेकिन कुछ ही देर बाद वह भूल गया कि वह क्या कहना चाहता था। सुष्मिता ने उसकी परेशानी को समझते हुए कहा, “कोई बात नहीं रमेश, हम सब यहाँ तुम्हारे साथ समय बिताने आए हैं। चलो, हम कुछ खेल खेलते हैं।”
प्रीति और उसकी सहेलियां रमेश के साथ खेल खेलने लगीं। रमेश को यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि लोग उसे समझ रहे हैं और उसके साथ समय बिता रहे हैं। खेलते-खेलते रमेश ने खुद को थोड़ी देर के लिए सामान्य महसूस किया। उसे लगा कि वह भी दूसरों की तरह सामान्य जीवन जी सकता है।
समय बीतता गया और सुष्मिता और रमेश के बीच अच्छी दोस्ती हो गई। सुष्मिता ने रमेश की बीमारी को कभी भी उनके बीच नहीं आने दिया। वह उसे हमेशा प्रोत्साहित करती रही और उसकी मदद करने की कोशिश करती रही। धीरे-धीरे, रमेश ने महसूस किया कि सुष्मिता की मित्रता ने उसे आत्मविश्वास दिया है।
रमेश के माता-पिता भी इस बदलाव को देखकर बहुत खुश थे। वे देख सकते थे कि रमेश अब पहले से अधिक खुश और आत्मविश्वासी हो गया है। प्रीति भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी और उसकी मेहनत रंग ला रही थी। उसने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पा लिया और डॉक्टर बनने की ओर एक कदम और बढ़ा लिया। “तुम बहुत अच्छी हो” | tum bahut achi ho |
एक दिन, जब रमेश और सुष्मिता गाँव के पास के तालाब के किनारे बैठे थे, सुष्मिता ने रमेश से कहा, “रमेश, तुम बहुत प्रतिभाशाली हो। तुम्हारी बीमारी तुम्हें परिभाषित नहीं करती। तुममें बहुत कुछ है जो दुनिया को दिखाना है।”
रमेश ने सुष्मिता की आँखों में देखा और कहा, “धन्यवाद सुष्मिता, तुम्हारे कारण ही मैं आज खुद को पहचान पा रहा हूँ।”
कुछ साल बाद, प्रीति एक सफल डॉक्टर बन गई और उसने अपने परिवार का नाम रोशन किया। रमेश ने भी अपनी बीमारी के साथ जीना सीख लिया था। उसने गाँव में एक छोटी सी दुकान खोली और अपने माता-पिता की मदद से उसे चलाने लगा। सुष्मिता और रमेश की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई और उन्होंने शादी कर ली।
रमेश के माता-पिता अब निश्चिंत थे कि उनके बाद भी रमेश का ख्याल रखने वाला कोई है। वे खुशी-खुशी अपने बाकी जीवन बिताने लगे। रमेश और सुष्मिता ने मिलकर एक खुशहाल जीवन की नींव रखी, जिसमें प्रेम, समझ और सहयोग की कमी नहीं थी।
इस तरह, रमेश ने अपनी बीमारी को पीछे छोड़कर एक नए जीवन की शुरुआत की, जिसमें उसकी बहन प्रीति और उसकी प्रिय सुष्मिता का बहुत बड़ा योगदान था। यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, अगर हमारे पास प्यार और समर्थन हो, तो हम हर चुनौती का सामना कर सकते हैं और जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। “तुम बहुत अच्छी हो” | tum bahut achi ho |
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ओंकार रॉय.