कहानी का शीर्षक: “गुम है किसी के प्यार में” Gum Hai Kisi Ke Pyar Mein |
रवि की यादों में खोई हुई थी स्नेहा। उसकी आँखों में बस वही एक चेहरा बसा हुआ था, जिसे उसने पहली बार स्कूल में देखा था। स्नेहा एक बहुत ही साधारण सी लड़की थी, जिसकी दुनिया में खुशियों का कोई बड़ा हिस्सा नहीं था। उसके माता-पिता एक दुर्घटना में गुजर गए थे जब वह मात्र छह साल की थी। उसके बाद उसे एक अनाथालय में भेज दिया गया था। वहाँ से एक दंपत्ति, जो बच्चों को बहुत प्यार करते थे, ने उसे गोद लिया।
स्नेहा के गोद लेने वाले माता-पिता, मोहन और राधा, उसे बहुत प्यार करते थे लेकिन वे उसे लड़कों से बात करने की अनुमति नहीं देते थे। उनका मानना था कि लड़कियों को लड़कों से दूर रहना चाहिए ताकि वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सकें और अपने भविष्य को संवार सकें। स्नेहा ने भी अपने माता-पिता की बात मान ली और कभी किसी लड़के से दोस्ती नहीं की। लेकिन दिल के किसी कोने में एक छोटी सी जगह थी, जो प्यार की चाहत से भरी हुई थी।
बारहवीं कक्षा में स्नेहा ने रवि को पहली बार देखा। वह नया लड़का था, जो उसके स्कूल में आया था। रवि हमेशा से ही हंसमुख और मिलनसार था। उसकी हंसी में एक जादू था, जो स्नेहा को अपनी ओर खींचता था। वह क्लास में हमेशा सबसे पहले पहुंचता और सबसे आखिरी में जाता। पढ़ाई में भी अच्छा था और खेल-कूद में भी अव्वल।
स्नेहा ने रवि को कभी सीधे तौर पर नहीं देखा, लेकिन उसकी हर हरकत पर उसकी नज़रें रहती थीं। जब भी रवि किसी सवाल का जवाब देता, स्नेहा के चेहरे पर अनजाने ही मुस्कान आ जाती। लेकिन उसने कभी अपनी भावनाओं को ज़ाहिर नहीं किया। वह जानती थी कि उसके माता-पिता इसे कभी मंजूर नहीं करेंगे।
स्नेहा की सहेलियां अक्सर उसे छेड़ती थीं, “क्यों स्नेहा, रवि को देखती रहती हो? कुछ बात क्यों नहीं करती उससे?” स्नेहा बस मुस्कुरा देती और कहती, “ऐसी कोई बात नहीं है, तुम लोग बेवजह बात बना रही हो।”
एक दिन स्कूल में एक कार्यक्रम हो रहा था। स्नेहा ने अपने दोस्तों के साथ उसमें भाग लिया। वहाँ रवि भी था। कार्यक्रम के दौरान स्नेहा ने देखा कि रवि अकेला खड़ा है। उसके दिल ने जोर दिया कि वह जाकर उससे बात करे, लेकिन उसके कदम नहीं बढ़े। वह सोचती रही कि क्या होगा अगर उसके माता-पिता को पता चल गया? “गुम है किसी के प्यार में” | Gum Hai Kisi Ke Pyar Mein |
उस रात स्नेहा ने सोते वक्त अपने दिल की बात डायरी में लिखी, “रवि, मैं तुमसे कुछ कह नहीं सकती, लेकिन मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ। तुम्हारी हंसी, तुम्हारा बोलना, सबकुछ मुझे बहुत अच्छा लगता है। पर मैं इसे कभी ज़ाहिर नहीं कर सकती। मैं चाहती हूँ कि तुम खुश रहो, भले ही मेरे बिना।” “गुम है किसी के प्यार में” | Gum Hai Kisi Ke Pyar Mein |
समय बीतता गया और स्नेहा की पसंदगी प्यार में बदलती गई। लेकिन वह अपने दिल की बात किसी से नहीं कह पाई। रवि की हंसी, उसके साथ बिताए हर पल को वह अपने दिल में संजो कर रखती रही। वह उसकी क्लास खत्म हो गई और स्नेहा की भी स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गई। कॉलेज के दिन आ गए, लेकिन स्नेहा ने रवि से कभी बात नहीं की।
कॉलेज में भी स्नेहा ने अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाया और रवि की यादों में खोई रही। एक दिन, कॉलेज के वार्षिक उत्सव में स्नेहा ने रवि को देखा। वह भी उसी कॉलेज में था। स्नेहा का दिल धड़कने लगा, लेकिन उसने अपने आप को संभाला। उसने तय कर लिया कि वह अपनी भावनाओं को एक बार फिर दबाए रखेगी।
उस उत्सव के दौरान, एक नाटक का आयोजन हुआ जिसमें स्नेहा ने भी भाग लिया। नाटक खत्म होने के बाद जब स्नेहा स्टेज से नीचे आई, तो रवि ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराया। स्नेहा का दिल फिर से धड़कने लगा, लेकिन उसने अपने आप को काबू में रखा।
रवि उसके पास आया और कहा, “तुम बहुत अच्छा अभिनय करती हो। मैं तुम्हें पहले से जानता हूँ, हम एक ही स्कूल में थे। पर हमने कभी बात नहीं की।”
स्नेहा ने धीरे से मुस्कुरा कर कहा, “हाँ, मैं जानती हूँ।” वह ज्यादा कुछ नहीं कह पाई।
रवि ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा, “मैं तुम्हारे अभिनय का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। क्या हम दोस्त बन सकते हैं?” “गुम है किसी के प्यार में” | Gum Hai Kisi Ke Pyar Mein |
स्नेहा के मन में एक द्वंद्व चल रहा था। वह जानती थी कि उसके माता-पिता को यह पसंद नहीं आएगा, लेकिन उसने हिम्मत जुटाई और कहा, “मुझे यह अच्छा लगेगा।”
धीरे-धीरे स्नेहा और रवि के बीच दोस्ती बढ़ी, लेकिन स्नेहा ने अपनी भावनाओं को फिर भी छिपाए रखा। वह रवि के साथ समय बिताती, उसकी बातें सुनती, लेकिन अपने दिल की बात कभी नहीं कहती।
समय बीतता गया और एक दिन रवि ने स्नेहा से कहा, “स्नेहा, मुझे तुमसे कुछ कहना है। मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ। क्या तुम भी मुझे पसंद करती हो?”
स्नेहा का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने सोचा कि अब उसे सच बताना ही होगा। उसने कहा, “रवि, मैं भी तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ। लेकिन मेरे माता-पिता इसे कभी मंजूर नहीं करेंगे।”
रवि ने स्नेहा का हाथ पकड़ा और कहा, “हम एक दूसरे को पसंद करते हैं, यही सबसे बड़ी बात है। हमें अपने प्यार के लिए लड़ना होगा।”
स्नेहा ने हिम्मत जुटाई और कहा, “हाँ, रवि। मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
इस तरह स्नेहा ने अपने प्यार को अपनाया और अपने माता-पिता से बात की। पहले तो वे नाराज़ हुए, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने स्नेहा की खुशी के लिए इस रिश्ते को मंजूर कर लिया। स्नेहा और रवि का प्यार जीत गया और उन्होंने मिलकर अपने जीवन की नई शुरुआत की। “गुम है किसी के प्यार में” | Gum Hai Kisi Ke Pyar Mein |
समाप्त
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ओंकार रॉय.
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